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पत्र पर लिखा है कि "सनात्र पूजा में फूलों का घर बनावे और केलीघर बनावे" इत्यादि हकीम के दृष्टान्त से भव्यजनों के हृदयों को कठोर करते हो लेकिन इस हकीम के दृष्टान्त को विचार कर देखो तो तुम्हारा ही लिखा हुआ दृष्टान्त तुम्हारे ही मत को निकृष्ट करता है क्योंकि हकीम तो यह जानता है कि नशतर के लगाने से रोग जाता रहेगा शायद ही मरेगा और तुम तो खूब जानते हो कि केले के स्तम्भ को काटेंगे तो केले की जड़ में के जीव असंख्यात तथा अनन्त निश्चय ही मरेंगे और त्रस्य जीव भी बहुत मरते हैं क्योकि सूत्र दशवें कालिक वा आचाराङ्ग में कहा है यथा “ रुड्ढे सुवा रुढपई ठे सुवा" इति वचनात् फिर और भी सुनो कि
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