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रोगी के नशतर आदिक मारे, यदि वह रोगी मरजाय तो वैद्य ( हकीम ) को दोप (इल जाम ) नहीं क्योंकि हकीम तो रोग गवाने का अभिलाषी है पर मारने का अर्थी नहीं है इस कारण दोष नहीं ऐसे ही पूजा आदि कर्म करने में जल और निगोद आदिक स्थावरादि की हिंसा होने का दोष नहीं क्योंकि हम तो भक्ति के अभिलाषी हैं परन्तु स्थावर की हिंसा के अभिलापी नहीं है | उत्तर पक्षी, तर्क हे भाई! इस छुन छुनों की पुकार ( आवाज ) से तो केवल बालक ही रीझेंगे और बुद्धिमान लोग तो तत्व की ओर ख्याल करेंगे, तूंबे और लड़के के, दृष्टान्त क्योंकि तुमने जो हिंसा में धर्म अर्थात् फूल तोड़न में तथा वृक्ष छेदन में दोष नहीं लिखा है जैसे ४७४ वें