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तुम्हारा हकीम का दृष्टांत बिलकुल अयोग्य और झूठ है क्योंकि हकीम तो रोगी की और रोगी के सम्बन्धियों ( वारिसों) की आज्ञा से नशतर मारता है और वह रोगी अपने आराम के वास्ते कहता है कि हे हकीम ! मेरे नशतर मार मैं चाहे मरूं चाहे जीऊं, सो इस कारण हकीम को दोष नहीं, अगर वह हकीम रोगी की और रोगी के वारिसों की आज्ञा बिना जबरदस्ती से नशतर उसके पेट में घसोड़ देवे और फिर रोगी मरजाय तो देखो वह हकीम क्यों कर दोष अर्थात् इलजाम से बच सक्ता है इत्यर्थ । सो हे पूर्व पक्षियो ! तुम तो त्रस्य स्थावरों की मर्जी के बिना अर्थात् आज्ञा के बिनाही प्राण हरते हो क्योंकि वे वृक्ष, फल, फूल, आदि के जीव