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यदि इस में किसी पुरुष को शङ्का उत्पन्न हो तो उसी जैनतत्वादर्श में देख कर निश्चय कर लेना और जो २ जैनतत्वादर्श ग्रन्थ में विरुद्ध हैं उन में से अब हम कई एक विरुद्ध यहां वनगी मात्र लिखते हैं यथाः
(१) प्रथम जैनतत्वादर्श ग्रन्थ के ५७४वें पत्र में लिखा है कि ११४५के साल में जन्म ५ वर्ष के ने दीक्षा ली और ८१ चुरासी बर्ष के होकर कालकरा, १२२९ के साल में देवचन्द्र सूरी जी के शिष्य हेमचन्द्र सूरी जी हुए उनको लिखा है कि “ तीन किरोड़ ग्रन्थ रचे हैं, सो प्रथम तो पांच वर्ष के को दीक्षा लिखी है सो विरुद्ध अर्थात् झूठ है, क्योंकि सूत्र में ५ वर्ष के को दीक्षा