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देने वाला जिनाज्ञा से बाहर लिखा है । यथा व्यवहार सूत्र के १० दशवें उदेशे का १९ वां सूत्र “नोकप्पइनिगंत्थाणं वानिगत्थिणंवा खुडुअंवा खुडिअंवा उमठवास जायं उवठा वित्तएवा सभूजित्त एवा” इति वचनात् अस्यार्थः नहीं कल्पे अर्थात् नहीं जिनकी आज्ञा साधु को वा साध्वी को छोटा बालक अथवा छोटी बालिका, कैसा, बालक जन्म से आठ वर्ष | से कुछ भी न्यून होय ऐसे बालक को दीक्षा में उठाना अर्थात् दीक्षित करना ( साधु बना लेना ) न कल्पै इत्यादि, तथा श्री भगवंती सूत्र सत्तक २५ उदेशा ६
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समायक चारित्र की तिथि उत्कृष्टी नवहिं वासे ऊम्म या पुव्बकोडी " इति वचनात् समायक चारित्र कोड़ पूर्व की आयु