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जैन तत्वादर्श ग्रन्थ में आदि के तृतीय पत्र पर लिखा है कि इंडिये दुर्गति अर्थात् नरक पड़ने के अधिकारी हैं और अपने आप को बहुत पण्डित करके माना है और उन्होंने जैन तत्वादर्श ग्रन्थ छपाया है सो उसमें क्या २ कथन है सो हम यहां नाम मात्र लिखते हैं कुछ तो अन्य मत वाले अर्थात् वेदान्तियों के और वैष्णवों के और शैवों के इत्यादि मतों के निन्दा रूप कथन लिखे हैं सोई कुछ तो उन्हीं के शास्त्रों के अनुसार और कुछक कल्पित हुज्जतें करी हैं और कुछक प्रश्नोत्तर करके पूर्वक मतावलम्बियों को रोका भी है । क्योंकि पिछले आचार्य षट मत के तर्क शास्त्र रच गये हैं सो उन शास्त्रों के बमुजिब बहुत ही परि