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चाहिये कि मुखवस्त्रिका हाथ में रखनी कहां चली है सो असल अर्थ तो यह है कि मुख पर रहे सो मुखवस्त्रिका और जो हाथ में रहे सो हाथवस्त्रिका और फिर कोई ऐसे कहे कि मुख वस्त्रिका तो चली है परन्तु डोरा कहां चला है तो उसको यह कहना चाहिये कि, रजो हरण की फलीयें चली हैं परन्तु फलीयें अर्थात् दशियों में डोरी पावणी कहां चली है और कै तार की और के हाथ की चली है इत्यादि, सो, अब इन दिनों में उन लवजी महाराज के आम्नाय के साधु महात्मा श्रीउदयचंदजी विलासरामजी श्रीमोतीरामजी श्रीजीवनरामजी आदि बहुत हैं सो ऐसे त्यागी वैरागी साधुओं को इंडिये नाम से आत्माराम संवेगी ने