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यादि विरक्ति जप तप रूप समाधि को देखकर बहुत शिष्य होगये जो किसी को इसमें शङ्का उत्पन्न होय तो जैन तत्वादर्श ग्रन्थ में से सहीह कर लेना, क्योंकि वहां भी ५९२ पत्र पर यह लवजी का कुछक कथन है और जो कोई मत पक्षी ऐसे कहे कि लवजी ने उक्त से नवीन मत निकाला है तो फिर उसको यह उत्तर देना चाहिये कि उस लवजी ने तो कोई उक्त शास्त्र नहीं रचाये क्योंकि जैन तत्वादर्श रचने वाले ने भी शास्त्रोक्त क्रिया करने पर ही लवजी का गुरुसे विवाद ( तकरार) हुआ लिखा है परन्तु नवीन मत वा नवीन शास्त्र बनाने से तकरार हुआ ऐसे कहीं नहीं लिखा है, सोई पूर्वक मत पक्षी का कहना ऐसा है कि जैसे कल्पवृक्ष