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देशर में फिरने लगे फिर उन शहरों में जो जो भ्रष्टाचारी यतियों के बहकाये हुए लोक थे वे लवजी के कठिन मार्ग को देखकर कहने लगे कि हे महाराज ! तुमने यह कठिन वृत्ति कहां से निकाली है, तब लवजी महाराज बोले कि हमने पुराने शास्त्रों में से ढूंडकर निकाली है यथा । ढूंडत ढूंडत ढूंड लिया सब वेद पुराण कुराण में जोई। ज्योंदही माहींसुं मक्खन ढूंडत यों हम इंडियो का,मत होई॥ जो कछु वस्तु ढूंडेही पावतविन ढूंडे पावत नहीं कोई। खो हम ढूंड्योधर्म दया में जीव दया बिन धर्म न होई १ ॥
तब परस्पर लोक यों कहते भये कि यह वह यति है, जिनों ने ढूंड के क्रिया साधी है, ऐसे ही इंडिया २ नाम' प्रसिद्ध होगया और उनकी दमित इन्द्रियपन राग रङ्ग विप