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चण्डाल सोई नर जोय ॥ ९॥ हरी दातन जो करे बड गूलर फल खावै । धर्म पंथ ना | चलै जोहड में नित २ न्हावै ॥ १०॥ सदा २ पावक जलै करै घना नुकसान । सब रस मेल भोजन करे चण्डाल सोई नर जान॥११॥ जल में बैठे बाहर ताहीं से चुलू उठावै । बन में करे शिकार गोलिये जीव हनाव ॥ १२ ॥ पंचामृत मिलाय करै जिभ्या का स्वादा। ताते लागे महा कर्म करै सन्तन सुं वादा ॥ १३ ॥ गुण ही को औरण कहै | दगाबाज़ नर जेहं । निग्रंथ गुरु को कहै झूठा चण्डाल कहीजे तेह ॥१४॥ गई वस्तु जो गई ताह नर कर है झोरा । मद्य मांस जो खाय गोसुत करै बिछोरा ॥ १५॥ होय क्लेश कुटुंब में मन में हरषत थाय । यती