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मुर्ख ||२३|| सत्पुरुष त्यागी साधु की संगत पाके त्याग पचक्खान सेवा, भक्ति न करे सो मूर्ख ॥ २४ ॥ सुपात्र के योग मिले पै दान न देवे सो मूर्ख ॥ २५ ॥ ब्राह्मण कौन यथा श्लोक | सत्यवादी जितक्रोधः शील सत्य परायणः । सनाम ब्राह्मणो मान्य इन्द्र पुत्रेह भारत ॥ १ ॥ इत्यादि ॥ अस्यार्थः सच्च बोले जीते काम क्रोध को ब्रह्मचारी सत्य धर्म करने में उद्यमी तिस को ब्राह्मण कहिये हे भरत ! इत्यर्थः ॥
चण्डाल कौन यथा पाण्डव चरित्रे । " एकवार कह भीम बहुर कहने नहिं पाया । चण्डाल वही नर जानिये औगुण कहे पराया ॥ १ ॥ मात पिता भये बृद्ध ना वा की टहल करेई | चंडाल सोई नर जानिये नारी को