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जांय तो खेवा पार हो जाय संगम जाट की तरह और अपनी स्त्रियों को शिक्षा करा करो कि हे स्त्रि! तुम कूड़ कपट क्लेश की सहिज स्वभाव धरता हो और अज्ञान के बल से ईर्षा में चिन्ता में प्रवृत्त हो और रात दिन धंधे ही में बीतता है सो तुम से और तो सुकृत होना मुश्किल है परन्तु रसोई के वक्त जो साधु (संत) आनिकले तो उनको भक्तिसे | यथा श्रद्धा भोजन दे दिया करो जो भला तुम्हारा इसी से कुछक निस्तारा हो जाय इति । __ इस रीति से गामों में अनजान लोकों को समझाना चाहिये कि जानकारों ने तो शिक्षा धनी सुन रक्खी है परन्तु अनजान एक भी समझ जाय तो बहुत लाभ होय क्योंकि वह मोटे पाप का त्याग करेगा और
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