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मन भाई है। जो तू यों जानत है वेद यों बखा नत है यज्ञजलो जीव पावै स्वर्ग सुख दाई है। पड़े क्यों न आप ही कुब क्यों न गेरे बीच मोह मत जार जगदीश की दुहाई है ॥१॥ । क्योंकि तुम तो स्वर्ग (बहिश्त ) के सुखों को जानते हो और चाहते हो सो तुम को तो (बहिश्त) दौड़ के लेनी चाहिये और वे पशु तो विचारे गरीब जानवर कुछ बहिश्त को नहीं जानते हैं और न चाहते हैं तो फिर तुम लोग उन को जबरदस्ती बहिश्त क्यों देते हो अपितु कहां है इस तरह से बहिश्त सो हे भाई ! क्यों गाफल हुए हो जबान के रसिया और काम के बधारक और मांस के लोभी हो के गरीब जानवरों की गर्दन पर छुरी धरते हो और