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वर, सुना है कि यह है खुदा का घर” "दिलबदस्तावर के हज्जेअकबरस्त । अज हजारों काब्बा यकदिल बेहतरंस्त” इत्यादि ॥ सो अनार्य लोक अपने सिर अज़ाव होने का तो हौल करते नहीं हैं बलकि जैसी खुशी गुजारते हैं कि यह स्वर्ग तथा बहिश्त होगया तो फिर उन को पूछना चाहिये कि हे अन्यायियो ! जो जैसी जुल्म की मौत मरने से स्वर्ग और बहिश्त होती है तो फिर मा बाप को और बेटा बेटीको क्यों नहीं स्वर्ग करते तथा आप ही स्वर्गवासी क्यों नहीं होते यथा कबित्त “कहै पशु दीन सुन यज्ञ के करैया बीर, होमत हुताशन में कौन सी बड़ाई है ॥ स्वर्ग सुख मैं न चाहं देह मुझे जो न कहं घास खाय रहूं मेरे यही
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