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( २६७ )
शस्त्र बेचे ( कसाई को शस्त्र) देवे सो कसाई ७ कसाई को व्याज पे दाम देवै सो ( कसाई की अधर्म कमाई का ) व्याज खावै सो कसाई ८ इति ॥ और ३ तीसरे हल फेरते २ जब मध्य में थोड़ासा खेत रह जाय तब स्तोक काल अर्थात् थोड़ी देर हल को बन्द करो क्योंकि जितने खेत में जीव जन्तु होते हैं वे हल से डरते २ मध्य में आजाते हैं सो हल के थामने से वे जीव सुखाभिलाषी हुये २ कहीं २ को भाग जायेंगे और तेरा इस में कुछ लम्बा हरज भी नहीं है और जो तू निर्दय हो कर जलदी हल फेर देगा तो नाहक उन जीवों के प्राण लूटने के पाप का भागी होवेगा || और ४ चौथे पशु की चिच्चड़ी उतारे विना तो तुमें सरता नहीं है