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तथा छत्ती सक्त सिरसे कर्ज़ चुकाया नहीं तथा विश्वास घात अर्थात् मित्र वन के अगले का भेद के काम विगाड़े । यथा मित्र से अन्तर गुरु से चोरी इत्यादि कर्मों से पशु योनि में उत्पन्न हुए हैं और यहां नाक छिदाई है और पीठ लदाई है और सुख दुःख ताप शीत भूख प्यास पर वश हो रही है और दुःख सुख किसी को बताने में समर्थ नहीं हैं सो हे भाई! ये तो अपना पूर्व कर्म फल भोग रहे हैं, फिर तुम इन को निर्दय होकर और क्रोध में भर कर दान्त पीस कर ताड़ोगे तो तुम को भी क्रोध के वश शायद पशु योनि का बन्धन पड़ जावेगा और इसी तरह बदला देना पड़ेगा || और दूसरे बूढी गौ वा बूढे बैल आदिक को