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भूमि में हल फेरते हुए प्रथम तो १ बैलों को भूख से प्यास से तथा क्रोध सहित घनी मार से न सताओ क्योंकि उनके बल की तुम कमाई खाते हो और फिर ऐसा विचार करना चाहिये कि इन पशुओं ने पूर्व जन्मांतरों में माता पिता की और गुरु की शाहूकार की तथा उपकारी की नेक आज्ञा मानी नहीं और उनको दुःख दिया और किये हुए उपकार को मेटा तथा साधु कहा के साधु के गुण अङ्गीकार नहीं करे जैसे कि मन और इन्द्रियों को साधा नहीं और वैठे वटाये गृहस्थियों को घूर २ के हराम के टुकड़े खाये और आटा बेच २ धन इकट्ठा करा और स्त्री सङ्ग से निवृत्त नहीं हुए और फिर साधु कहा के गृहस्थियों से मत्था टिकवाय