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के तजूंगा और अनुभव आत्म स्वरूप सत्य सत्या में मगन होके तप संयम में उद्यमवान् हूंगा इत्यादि और फिर प्रभात समय पूर्बक विधि सहित समायिकादि अङ्गीकार करे और १४ जो कृषाणी वणजता होय तो परोपकार के निमित्त कसाणादि शुद्र जाति तथा शूद्र कर्तव्य करने वालों को उपदेश रूप शिक्षा देवे कि हे भाई ! तुमने पूर्व पुण्य के योग से नर देह पाई है परन्तु साधु का तथा धर्म का अपमान करने के पाप से शुद्र वर्ण में जन्म हुआ है तो शूद्र कर्म अर्थात् खेती बाड़ी कूआ आदिक अजीविका करे बिना तो तुम को सरे नहीं हैं परन्तु निर्दय होकर मोटा पाप तो न समाचरो जैसे कि पराई भूमि तोड़ के अपनी न करो और अपनी