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महावीर स्वामी जी, इस प्रकार चौबीसों जिनेन्द्रों की महिमा करे जैसे कि धन्य हो शान्ति धर्म प्रवर्त्ताविक आप तरे और औरों के तरने को भला रास्ता दया क्षमा रूप बता गये सदा विजयी रहो शासन तुम्हारा । तथा साधु सती के गुणों का स्मरण करे कि धन्य हो संतजन कनक कामिनी और देह की ममता के त्यागी तथा शीतादि परिसह सहने को क्षांति क्षमण हो और मैं अधन्य हूं जो जान बूझ के कनक कामिनी के फंदे में फंस रहा हुं और हिंसा मिथ्यादि आरम्भ को अनर्थ का मूल जान के फिर समाचरण कर रहा हुं और वह दिन धन्य होगा कि जो मैं आरम्भ परिग्रह को अन्तःकर्ण से कटुक फल का दाता जान के उदासीन हो