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चाहे गधे के ऊपर भगवां कपड़ा पड़ा हो तो उस को भी मत्था टेक लेना चाहिये, अपितु ऐसे नहीं किन्तु दोहा-ईर्षा भाषा एषणा, लखलीजै आचार । गुणवन्त नर | को जान के, बन्दै बारम्बार ॥ १॥ और फिर १३ श्रावक रात्री को धर्म स्थान में पूर्बक समायक पडिक्कमणा करे और रात्री का चोविहार तथा तिविहार तथा ब्रह्मचारादि अंगीकार करे और फिर रात को सोते पड़े नींद खुल जाय तो दुष्ट विचारों में न पड़े जैसे कि आह ! फलाना मित्र क्यों न मिला और अमुके वाणिज्य में लाभ क्यों न हुआ, तथा हे दुश्मन ! तेरा नाश होय इत्यादि अपितु शुद्ध विचार करे जैसे कि धन्य हो शान्तिनाथ जी, पार्श्वनाथ जी और