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मोटे लाभ के निमित्त चला परन्तु मार्ग कठिन था सो अपने सुखमाल पन में आके कठिनता से डर के रस्ते ही में थक के पड़ और चोरों के हाथ माल लुटा बैठा ना घरका रहा न घाट का । अपितु उसको मुनासिब था कि उद्यम करके नगर में पहुंच के और कमाई कर के शाहूकार और सुखी हो जाता तो उस का घर से जाना सफल होता यही दृष्टान्त हे साधो ! तुमनें घर तो छोड़ दिया और आत्महित को उत्पन्न नहीं किया और काम क्रोध लोभ रूपी चोरों से तप संयम रूपी माल लुटवा दिया तो फिर तुम्हारे घर छोड़े का क्या सार हुआ इस से तो घर में ही अच्छे थे क्योंकि गृहस्थी तो कहाते थे और अब साधु कहां के मायाचारी अर्थात्
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