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दगाबाजी सेव के पशुगति उत्पन्न करते हो। तम्मात् कारणात हे साधो ! तुम वत्र पात्रादि उपकरण का मर्यादा पर्यन्त संचय मत करो क्योंकि साधु का धन, कीड़ी का कण, पंछी की रोटी, और गृहस्थी की बेटी, अपने काम नहीं आती है और ही खा जाते हैं सो तुम तो नाहयः लोम की पोट सिर पर घर के भवसागर में डूबते हो । और रसना के वशवती हो के आरम्भ सहित सुचिता चित सदोष आहार पानी भोगते हो सो क्या तुम ने टुकड़े के धोखे टुकड़े ही खाने को मुंड मुंडाया है जैसे किसी ने कोई मज़गार कर खाया और तुम ने भेप घर मांग खाया । और ज्योतिप. वैद्यक आदि मन टामन कर के पेट भराई नया