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आचाराङ्ग सूत्र २१ जाति का फासू पानी कोटी का धोवण जौं का धोवण चावलों का धोवण दही दूध के भाण्डों का धोवण इत्यादि । और ३ खादिम सो दूध दही घी ||मिष्टान्न फासू फल आदिक, अन्न पानी के सिवाय जिस्से भूख प्यास हरै । और ४ स्वादिम सो स्वाद मात्र औषधि की जाति सुंठ मिरच लौंग सुपारी इलायची इत्यादि सो इस चार प्रकार के यथा प्राशुक आहार की तथा वस्त्र पात्र आदि की यथा अवसर न्यारी २ निमन्त्रणा करे और साधु को चाह होवे सो विधि सहित देवे और देके परमानन्द होवे और फिर हाथ जोड़ के अर्ज करे कि हे स्वामिन् ! फिर भी दया दृष्टिकर के कृपा की जियेगा क्योंकि मेघ की और