________________
( २४९ )
जो विषय सुख को विष्टा के तुल्य जान के मन और दृष्टि कदाचित् भी विषय की ओर नहीं करते हैं । सो इस रीति से सन्तोप भाव में प्रवतें और इसी रीति से जैन धर्म
की प्रभावना होती है क्योंकि जान और (अनजान देखने वाले असे कहेंगे कि धन्य
हैं यह जेनी लोग जो पर धन को तो धूलि || के समान जानते हैं और पर स्त्री को माता | के समान जानते हैं यथाऽन्य मत शास्त्रस्य । साक्षी श्लोकः "मातृवत् परदाराश्च परद्रव्याणि
लोष्ट्रवत् । आत्मवत सर्व भृतानियः पश्यात || स वैष्णवः" इत्यादि । परन्तु ढोल ढमाके से
तो जैन की अधिकता अर्थात् प्रभावना कुछ नहीं होती है । और ६ पराई रांड झगड़े में पड़े नहीं जैसे कि हर एक के झगड़े में:
-