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( २४७ )
गजा संग चंग नासा सुख दीजिये || चंबेली चंपेच तेल मोगरेल केवरेल तिलोछी अंगोछी अछेराज सोंध भीजिये | छिनक सुगन्धि फिर होत है दुर्गंधि गन्धि पिण्ड या अपावन से कैसें धूपतीजिये || २ || सरस अहार सार कीने चार प्रकार पट् रस सुखकार प्रीति कर पोखी है | आछेर अम्बर अनूप आछादन कीजै तोख जोप राखियत रतीक में रोखी है ॥ नर के हैं नव द्वार नारि के ग्यारह वहत अशुचि जैसे मधुर की मोखी है ॥ मैल में सुं घड़ी मढी कांच कीसी कूपी किव अरिण्ड की झुफी काय पर खोखी || ३ || सो जो अंग अंग के अन्तरों में से अंगुली घस के देखो तो मरे कुत्ते कीसी बगल गन्ध आदिक की दुर्गन्धि आती है