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और ५ पराये सुख को और पराये पुत्र को पराई सुरूपा स्त्री को देख के हिरस न करे क्योंकि संयोग वियोग का स्वभाव जाने || और यदि अपनी दूकान आदि पर बैठा हुआ किसी सुरूपा पर स्त्री को जाती हुई को देखे तो उसे किसी तरह का ताना बोली वा तनाज़ा न करे क्योंकि जो देखे सो ऐसे जाने कि यह पुरुष पर स्त्री ग्राह्य है और अति कर्मादि कर्म बन्ध होजाता है और जो मन की चंचलताई से काम रागादि प्रकट होय क्योंकि रूप की और काम की परस्पर लाग है । जैसे चम्बक पापाण की और लोहे की तो फिर स्त्री की अपावनता विचारे कि अहो ! यह उदारिक देह सर्व ही नर नारि की सात धातुं करके उत्पन्न होती