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पन्द्रह कर्मादान मांहि ले कुवाणिज्य न करे और कम तोलना कम मापना न करे और दूसरे का ज्यादा बाणिज्य देख कर झूरै नहीं। जैसे कि इस पड़ोसी के तो बहुत आमददी है और मेरे थोड़ी है ऐसे शोक न करे किन्तु ऐसे बिचारे कि जितनी २ पुद्गल की फर्सना होती है उतना २ ही संयोग बियोग होता है ॥ और बेटा बेटी के विवाह में अपने || मकदूर (शक्ति) से ज़ियादा धन न लगावे क्योंकि जो कर्ज उठाकर शेखी में आके घना (अधिक) धन लगा देगा तो फिर पीछे चिन्ता करनी पड़ेगी और दुष्ट ख्यालात हो जायेंगे और अपने नियम धर्म में भी खलल हो जायगा क्योंकि धन के घट जाने से बुद्धि मलीन हो जाती है तस्मात् कारणात् ॥