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परम तपस्वी होके निरंजन निराकार पद को प्राप्त भये हैं, और कैसा जैन धर्म स्वात्म परात्म हित रूप और निस्पृह क्षमा दया तप रूप फरमाया है परन्तु जैसे नहीं है कि और मत के शास्त्रों में तथा व्यवहार बमुजिव काम क्रोध में पीड़ित देव जैसे गोपी वल्लव और गदा धनुषादि शस्त्र धारक और उपदेश आत्म ज्ञान का सो कैसे संभव है । सो हे भाई ! बताओ कि जैन के देव में और धर्म में क्या खोट है, और जो तुम्हारी समझ में कुछ खोट मालूम होता हो तो हम को बताओ हम उसका निर्णय करवा दें इत्यादि इस रीति से देव धर्म की शुश्रूषा होती है । ४ और फिर श्रावक दुकान पर जाकर वाणिज्य व्योहार रूप कार्य में प्रवर्त्त तो पूर्वक १५