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की खबर आई नहीं तो फिर कुछ उद्यम करना चाहिये नहीं तो शायद कुछ हीलणा
धर्म की होय इत्यादि । और जो कोई ऐसे | कहे कि साधु तो किसी का साहाय्य वांछै
नहीं तो उसको ऐसा उत्तर देना चाहिये कि | इस में साधु के सहाय्य वांछने का क्या मतलब है क्योंकि साधु तो सहारा न चाहै परन्तु श्रावक कों तो देवगुरु धर्म की शुश्रुपा करनी चाहिये अर्थात् खवर सार लेनी चाहिये कि मत कोई हीला होती हो, और कोई उनके खाने पीने को तथा असवारी तो लेही नहीं जानी है और जो देव गुरु धर्म की खवर सार आदि शुश्रुपा ही नहीं करे तो । वह श्रावक भव सागर से पार कैसे उतरै । | और वह श्रावक ही काहेका है । और जो
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