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( २३९ )
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देवे और अवसर सहित व्याख्यान सुने और आहार, पानी की विनती करे । और जो साधु नगर में विराजमान न होय तो धर्म स्थान उपाश्रय आदि में साहम्मीवच्छल करे अर्थात साधर्मी भाई इकट्ठे हो के धर्म उद्यम करे परन्तु कुछ जात पात का विशेष नहीं है तो फिर साधर्मी भाई किस को कहिये यथा॥ दोहा ॥ आसा इष्ट उपासना, खान पान पहरान । षट् लक्षण जिस के मिलें, उस को भाई जान ॥ १॥ और व्यवहार की वात न्यारी है । और आपस में साधु अथवा साध्वी की सुख साता की खवर पूछे कि अमुक मुनिराज अथवा अमुकी महा सती जी कौन से क्षेत्र में विराजमान हैं इत्यादि। और अपने क्षेत्र से साधु साध्वी जिस क्षेत्र
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