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( २३८ )
हरि फल आदिक का त्याग करो | अथवा निभि आंबिल आदिक तप करो । नौकरों को भी शिक्षा करो कि तुम पशुओं को बिना झटके फटके घास दाना आदिक न देवो और पशुओं को भूखे न रक्खो | और पशु के गले में खेंच के रस्सा न बान्धो और तंग न करो इस रीति परवारी जनों को धर्म कार्य में मेरे अपितु ऐसे ही न कहे जाय कि तुम पीसो कातो और यह करो वह करो इत्यादि || ३ || और फिर नगर में साधु होय तो उन के दर्शन करे और बन्दना नमस्कारादि सेवा समाचरे और साधु के पारणा तथा औषधि ( भेषज ) की चाह होय तो पूछे और पूछ के अपने घर होय तो अपने घर से देवे नहीं तो और घर से विधि मिलवा
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