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( २३७ )
यत्न करो और सूर्य उगे विना लीपै नहीं और दूध विलोवे नहीं और रसोई का सीधा सोधे विना वर्ते नहीं और सीधे में अनछाना पानी वर्ते नहीं और कल का पानी घड़ों का घल्या हुआ आज वर्ते नहीं और जो वर्तना होय तो मुड़के छाने विना वर्ते नहीं क्योंकि त्रस्य जीव पोरे आदिक पड़ जाते हैं और छाछ और घी विना छाने वतें नहीं क्योंकि मक्कड़ी कीड़ी आदिक का कलेवर पड़ा रह जाता है और नौणी घी को वर्ण गन्ध रसादि पलटे पीछे खाय नहीं और जो इतनी समझ न होय तो नौणी घी को रात वासी विल कुल रक्खे नहीं क्योंकि छाछ के संयोग नर्माई के कारण विगड़ जाता है ||
और महीने में बाहर दिन छः तिथि