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धप पड़ती है अब कौन जाय और सामाजिक करने का आलस्य कि अब तो गर्मी पड़ती है तथा शीत पड़ता है। कौन समायक करे और साधु को आहार अर्थात् भिक्षा, देने का आलस्य करे कि अरे अमुक तूही दे दे मैं तो लेटा पड़ा हूं इत्यादि । तथा घी, तेल, तथा आचार का बर्तन, गुड़, शहत का बर्तन भिगोई हुई खल का वर्तन तथा वस्खल (वट्टल) जो उरले परले यानि जूंठ खूठ के पानी का वर्तन, उघाड़ा (नंगा) पड़ा हुआ होय तो उसको आलस्य करके ढके नहीं सो आलस्य प्रमाद में नाहक कर्म बन्ध जाते हैं क्योंकि अनेक जन्तुस्थूल सूक्ष्म पूर्वक भाजनों में गिर २ के डूब २ के मर जाते हैं इत्यथ इति द्वितीयानर्थ दंडः ॥ २॥ .
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