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सो बाग बगीचे नाटक चेटक राग रंग देखने को जाना और पराए वर्ण गंध रस, स्पर्श देख के हुलसना कि आहा | क्या अच्छा है हमको भी ऐसे ही चाहिये | इत्यादि और फांसी आदिक लगते हुए पीड़ित पुरुष को देखना क्योंकि वहां ऐसे परिणाम होने का कारण है कि कब फांसी लगे और कब घर को जायें इत्यादि || और ४ चौथे कषाय प्रमाद । क्रोध में नाहक जलना और मान में नमेवना और माया अर्थात् दगाबाजी यानि छल से बात घड़नी और लोभ संज्ञा में प्रवर्त्तना जैसे कोई अकल का अन्धा और गांठ का पूरा आजाय इत्यादि और ५ पांचवें आलस्य प्रमाद सो गुरु दर्शन करने का और व्याख्यान सुनने का आलस्य जैसे कि
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