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चिन्ता । २ अमनोगम पदार्थ मिलने की चिन्ता | ३ भोगों के न मिलने की चिंता | और ४ रोगों के मिलने की चिन्ता का करना || २ || दूसरा रुद्र ध्यान अर्थात् १ प्रथम हिंसानन्द | सो हिंसा रूप कर्म के विचार में ध्यान होना जैसे कि मेरी सौकन तथा सौकन का पूत किस उपाय से मारा जाय और कब मरेगा तथा मेरी स्त्री रोगन है वा कुरूपा कलहारी है सो कब मरेगी और यह बूढ़ा बूढ़ी कब मरेंगे तथा मेरे वैरी का नाश कब होगा और वैरी के शोक (सोग ) कब पड़ेगा तथा वैरी के घर में तथा खेत में आग कब लगेगी इत्यादि || और २ दूसरे मृषानन्द | सो झूठ बोलने के तथा झूठा कलंक देने के उपाय विचार रूप || और ३