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तीसरे चौर्यानन्द | सो चोरी के छल के विश्वास में देन के प्रसंग ठगी करने के उपाय विचार रूप || और ४ चौथे संरक्षणानन्द | सो धन धान्य के पैदा करने के तथा धन धान्य की रक्षा करने के हिंसाकारी उपाय विचार रूप । अर्थात् चूहे धान आदिक खाते हैं तो बिल्ली रख लें इत्यादि । सो ये आर्त ध्यान और रुद्र ध्यान ध्यावने में अनर्थ अर्थात् नाहक्क कर्मबन्ध हो जाते हैं ताते “निश्चय नय को मुख्य रख के संतोष करना चाहिये यथा होनहार ना मेटे कोय, होनी हो सो होई हो ” इति वचनात् ॥ अथ २ दूसरा अनर्थ दण्ड । प्रमादाचरण | सो प्रमाद ५पांच प्रकार का है तिस का आचरण सो प्रमादाऽऽचरण
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