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आदिक ताप शीत सहने वाले ॥ ४ चौथे अकाम निर्जराए अर्थात् कष्ट पड़े पर नियम धर्म वा कुल मर्यादा से बाहर न होने वाले अथवा परवस भूख प्यास ताप शीतादि कष्ट पड़े पै सम भाव लाने वाले ये ४चार लक्षण देव गति में जाने के हैं। वह देव गति कैसी है। जो कि मृत्यु लोक से राजू पर्यंत क्षेत्र उलंघ के ऊर्ध लोक अर्थात् स्वर्ग लोक की पृथ्वी वज्र स्वर्णमयी है तिस के ऊपर स्वर्ग निवासी अर्थात् वैकुण्ठ निवासी देवताओं के विमान अर्थात् मकान हैं और वहां उत्पात सभा के विषे गर्भ बिना रत्नों की सिह्या के विषे देवता उत्पन्न होते है और देवता के उत्पन्न होते ही सिह्या का वस्त्र तन्दूर की रोटी की तरह फूल जाता है और
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