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( १९५३)
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शृंगार भूषण वस्त्र पहन कर भोग संयोग का स्वभाव पूर्ण करते हैं और माता पिता और गुरु की सेवा करते हैं और दान देते हैं और परमेश्वर के पद को पहचानते हैं अनेक शुभाशुभ कर्म करते हैं | और ( ४ ) चौथे चार लक्षण देव गति में जाने के कहे हैं । सो १ प्रथम सराग संयमी अर्थात् साधु वृत्ति संतोष शील के पालने वाले और कनक कामिनी बन्धन रूप गृहाश्रम को त्याग के अप्रतिबन्ध बिहारी परोपकार के निमित्त देशाटन करने वाले ॥ २ दूसरे संयमासंयमी अर्थात् गृहाश्रम धारी । यथा विधि गृह धर्म पूर्वक पाच अनुव्रतादि के समाचरण वाले ॥ ३ तीसरे बाल तपस्वी अर्थात अज्ञान कष्ट जैसे स्वआत्म परआत्म चीन्हें बिना पञ्चाि
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