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बोलने का और उन की आज्ञा में चलने का स्वभाव होय । और तीसरे साणुकोसियाए अर्थात् करुणावान होय यथा दुःखी जीव को देख के घट में मुावे और जो दुःख मिटने लायक होय तो तन धन बल के जोर से मेट देने का स्वभाव होय । ४ और चौथे अमच्छरियाए अर्थात् धन का रूप का बल का परवार का मान करे नहीं तथा शुद्ध प्रणाम से दान देवे और दान देके मान करे नहीं । ये ४ चार लक्षण मनुष्य गति में जाने के हैं वह मनुष्य गति कैसी है कि जो मृत्यु लोक अढाई दीप प्रमाण है यथा पृथवी के मध्य में १ जंबू नाम दीप है सो गोल चंद्र संस्थान है और लाख योजन की लंबाई चौड़ाई है और गिर्दनमाई तिगुणी से