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करे नहीं । परन्तु दया निमित्त दुःखी जीव का दुःख निवारने को पोषे तो अटकाव नहीं इति १५ पञ्चदश कर्मादानानि ॥ और इन्हीं पन्द्रह कर्मादान केडेमहा कर्म आवने आश्री ७ कुविश्न कहते हैं, यथा श्लोक । द्यूतञ्च मासंच सुराच वेश्या पापर्द्धि चौर्य परदार || सेवा । एतानि सप्त व्यसनानि लोके घोराति
घोरं नरकं नयान्ति ॥१॥ अस्यार्थः १ जूआ । खेलने वाला ॥२॥ मांस भक्षणे वाला ॥३॥
मदिरा पीने वाला ॥४॥ वेश्या गमन करने | वाला ॥५॥ शिकार खेलने वाला ॥६॥ चोरी
करने वाला ॥७॥ पर स्त्री सेवने वाला ॥ नये सात कुविष्ण के सेवने वाले मनुष्य घोर | से घोर दुःख स्थान नर्क में पड़ते हैं।इति॥
और इन सातों कुविष्णों का अन्यान्य दूषण