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सिंघाड़ा, जामन, जमोया, कैत, बिल, इत्यादि ) खाय नहीं || अथ दूसरे गुण व्रत में अशुद्ध कर्तव्य का भी त्याग करे जैसे कि १५ पंद्रह कर्मा दान हैं ॥
अथ पन्द्रह कर्मादान का नाम मात्र स्वरूप लिखते हैं कर्मादान उसको कहते हैं कि जिस कर्तव्य के करने से महा पाप कर्म की आमदनी होय इत्यर्थः ॥ १ ॥ प्रथम इंगाल कर्म सो कोयले करके बेचने और काच भट्ठी पंजावे लगवाने और भाट झोकना इत्यादि कर्म करे नहीं और ॥ २ ॥ दूसरे न कर्म सोबन कटावे नहीं बन कटाने का ठेका लेवे नहीं ||३|| साडी कर्म । सो गाड़ी बहल पहिये बेड्राहल चर्खा कोल्हू चूहा घीस पकड़ने का पिंजरा इत्यादि वनवा के बेचे