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ओर चौदह नेम भी इसी व्रत में गर्मित हैं। सो फिर कभी रोग्य परिभोग्य की मर्यादा वान् पुरुप ऐसे न करे कि १ मर्यादा उपरांत सुचित वस्तु फलादिक शून्य चित्त अर्थात् गाफल होकर खाये नहीं और २सुचित वस्तु को स्पर्श कर मर्यादा उपरांत की अचित वस्तु भी खाय नहीं जेसे वृक्ष से गूंद तोड़ के खाय तो गूंद अचित है ओर वृक्ष सुचित है इत्यादि । और ॥३॥ अधपक्का खाय नहीं और ॥ ४॥ कुरीत पकाया (जैसे होले भुर्था आदिक) खाय नहीं ओर ।। ५॥ भूख की अनिवारक जिस ओपधि अर्थात् जिस फल से भूख न मिटे उसे खाय नहीं जैसे जिस फल का थोड़ा खाना और बहुत गेरने का स्वभाव है (यथा ईख, सीता फल, अनार,