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दृष्ट
विषय पूर्वपक्षी के ग्रन्थ में मिथ्या लेख फिर तिस का
उचरपक्षी की तर्फ से खण्डन .... ४ अवस्था और ४ निक्षेष भगवान के वन्दन
योग्य हैं इस का खण्डन ..... साधु को ढोल ढमाके से नगर में लाना किस
न्याय से ऐसे प्रश्नोत्तर और तिस का
खण्डन .... .... .... ८७ इन का वेष और देव गुरु धर्म जैन मूत्र से
अमिलत है ऐसा लिखा है और मुख वस्त्रिका के विषय में बूटे राय संवेगी कृत पुस्तक का प्रमाण भी लिखा है .... ९२
अथ द्वितीय भाग सूचीपत्रम् द्वितीय भाग प्रारम्भ और द्वितीय भाग में ७
सात अङ्ग हैं तिस में प्रथम १ देव अङ्ग
सो तिस में नाम मात्र देव का स्वरूप है १०३ २ दूसरा गुरु अंग सो साधु का ९ नों
बाड़ ब्रह्मचर्य की और गुप्तादि बहुत .