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जिस कार्य को न करना हो उसका कारण निफल है यनि जव मैथुन त्यागा गया तो फिर शृंगार करने की क्या जरूरत है और आठ वर्ष के उपरान्त पुत्रादिक कोअपने साथ पलंग पर सुआवे नहीं और पिताभ्राता स्वसुर जेठ देवर आदिक के वरावर एक आसन बैठे नहीं क्योंकि अमि घृत के दृष्टांत अकार्य मैथुन बुद्धि प्रकट होने का कारण है फिर विपय बुद्धि को मोडना ज्ञान विना मुशकिल है और मैथुन के प्रसङ्ग से लोक विहार में अपयश होता है और गर्भादि कारण होने से अपघात वालघातादि दूपण होता है और दूपण के प्रभाव से परलोक में नर्क प्राप्त हो कर (अग्नि प्रज्वालन) तत्ते थम्भ वन्धन मारन ताडन जम पराभवरूप दुःखों का भागी