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( १५५ ) नी वस्तु मिला के देवे नहीं इति तृतीयाऽ। नुव्रतम् ॥ ३ ॥
॥ अथ चतुर्थाऽनुव्रतप्रारम्भः॥ चौथे अनुव्रत में स्वपरिणीत स्त्री पै संतोष करे पर स्त्री से काम सेवन का साग करे यावजीव तक फिर कभी ऐसा न करे ॥ १॥ अपनी मांगी हुई स्त्री जैसे कि उसी शहर में सगाई हो रही होय तो उस मांगी हुई स्त्री से काम सेवे नहीं क्योंकि वह व्याही नहीं ॥ २ ॥ अपनी व्याही हुई स्त्री छोटी उमर की हो तो उस से काम सेवे नहीं क्योंकि उसे काम की रुचि नहीं हुई है ॥ ३ ॥ पर स्त्री कुमारी व व्याही अथवा विधवा तथा वैश्या हो तिस के सङ्ग कुच मर्दन आदि काम क्रीडा करे नहीं और शीलवान पुरुष माता तथा भगिनी आदिक के ||
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