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॥ अथ तृतीयाऽनुव्रत प्रारम्भः ॥ तीसरे अनुव्रत में ताला तोड़ना ॥ १ ॥ धरी वस्तु उठा लेनी || २ || कुंवल लगानी ॥ ३ ॥ राहगीर लूट लेने ॥ ४ ॥ पड़ी वस्तु धनी की जान के धरनी ॥ ५ ॥ इत्यादि मोटी चोरी करे नहीं जब तक जीवे तो फिर ऐसा अकार्य कभी न करे ॥
१ कोई चीज चोर की चुराई जानकर फिर सस्ती समझ कर लोभ के वश होकर लेवे नहीं || २ || चोर को सहारा देवे नहीं जैसे कि जावो तुम चोरी कर लावो मैं लेलूंगा और तेरे पै कोई कष्ट पड़ेगा तो मैं सहारा दूंगा ||३|| राजा की जगात मारे नहीं || ४ || कम तोल कम माप करे नहीं ॥ ५ ॥ नयी वस्तु की वनगी दिखा के फिर उस में पुरा -