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( १५३ )
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छिपे हुए अपराध को प्रकट करे नहीं क्यों कि कोई चाहे कैसा ही हो न जाने अपनी बुराई सुन कर कुछ अपघात आदि अकार्य कर ले इत्यर्थम् ॥३॥ झूठा उपदेश करे नहीं जैसेकि मैंने तो झूठ बोलनानहीं तुम ने अमुक कार्य में अमुक झूठ बोल देना ऐसे कहे नहीं ॥४॥ स्त्री का मर्म अर्थात् अनाचार विलकुल प्रकट करे नहीं क्योंकि स्त्री चञ्चल स्वभाव होती है, सो पहिले तो बुराई कर लेती है और पीछे बुराई को सुनकर जलद ही कुए में कूद पड़ती है इत्यर्थः स्त्री का मर्म प्रकाशित न करे अथवा किसी की भी चुग ली करे नहीं ॥५॥ झूठी वही चिट्ठी लिखे नहीं इति द्वितीयानुव्रतम् ।।
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