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अर्थात् बहुत काल के लिये वस्तु संचय कर के रक्खे नहीं जैसेकि चतुरमास में आठ तथा || पन्द्रह दिन के उपरान्त काल तक संचय करे
नहीं और ग्रीष्म काल (गर्मी) में १५ दिन व एक महीने से उपरांत संचय करे नहीं और || शीत काल में १ महीने तथा डेढ़ महीने से || उपरांत संचय करे नहीं और चैत के महीने
से लेकर आश्विन (असौज) के महीने तक | रोटी, दाल आदिक ढीली वस्तु रात वासी रख के खाय नहीं ऐसे पहले अनुव्रत के पांच अतिचार कहे हैं ॥१॥ प्रथम नौकर को तथा पशु घोड़ा वैल आदिक को तथा पक्षी काग सूआदिक को रीस करीने पिंजरे में तथा रस्सी आदिक से बांधे नहीं ॥२॥ दूसरे नौ कर आदिक को तथा पशु वैल घोड़ा आ
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