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लते फिरते त्रस्य जीव को जान बूझ के मारने की बुद्धि करके न मारे जब तक जीवे तो फिर ऐसे न करे । घुणा हुआ अन्न भाठ वा भट्ठी में भुनावे नहीं और घुणा अन्नपीसे पिसावे नहीं और दले दवाले नहीं और सिर का गेरे नहीं और मक्खी का मुहाल तोड़े नहीं और गोबर सड़ावे नहीं और बिना छाने पानी पीवे नहीं और आट्टा दाल आदिक में विना छाना पानी गेरे नहीं और रस चलित पदार्थ को वर्ते नहीं अर्थात् जिस खाने पीने की चीज का अपने वर्ण गन्ध रस, स्पर्श से प्रतिपक्ष अर्थात् मीठे से खट्टा और खट्टे से कटुआ वर्ण गंध रस स्पर्श हो गया और जिस आटे में तथा मिष्टान्न पक्वान वूरा आदिक में लट पड़ जाय तो उसे वरते नहीं