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और जड़ चैतन्य बोध रूप लाभ हुआ कैसे कि गुरु के वचन रूप दीपक से रज्जु को सर्प और सर्प को रज्जु इत्यादि भ्रमरूप अंधकार का नाश हुआ और सम दृष्टि रूप नेत्रों करके यथार्थ भाव वंध मोक्ष रूप भास पड़ता है कि मैं भव्य जीव हूं अर्थात् अनादि सांत कर्म सहित हूं क्योंकि कुछक अज्ञान कर्म का नाश हुआ है तो कुछक निज परका स्वरूप बोध हुआ सो यही अज्ञानादि कर्म के अन्त होने अर्थात् मोक्ष होने का रास्ता प्रकट हुआ है तो अब इस रस्ते पर चलन रूप पुरुषार्थ करना चाहिये क्यों|| कि मैं चिदानन्द सुख दुःख का वेदक और
शब्द रूप, गंध, रस, स्पर्श का परीक्षक अनादि काल से चुरासी लाख योनि के विषय